सानिया ने काँपती हुई आवाज़ में पूछा, "क्या कर लेगा?"
नज़ीला: "सैक्स और क्या... उसका क्या बिगड़ जायेगा और तेरा भी क्या बिगड़ जायेगा... अरे मैंने ऐसी-ऐसी ब्लू फ़िल्में देखी हैं... जिसमें एक औरत अपनी सहेलियों के साथ अपने बॉय फ़्रेंड या शौहर को शेयर करती हैं... और अपनी आशिक़ से ही अपनी सहेलियों को चुदवाती हैं... फिर मैं भी तो तेरी सहेली ही हूँ और वैसे भी वो कौन सा तेरा शौहर है..!"
सानिया: "क्या सच में होता है ऐसे!"
नज़ीला: "चल तुझे मैं एक मूवी दिखाती हूँ!" ये कह कर नज़ीला ने अपनी अलमारी खोली और उसमें से एक डी-वी-डी निकाल कर सानिया की तरफ़ बढ़ायी।
सानिया: "ये... ये क्या है आँटी?"
नज़ीला: "वही जिसे तू पोर्न कहती है... देखनी है तो देख ले... मैं बाहर सलील का होमवर्क करवा कर आती हूँ..!" ये कह कर नज़ीला सानिया के हाथ में डी-वी-डी थमा कर बाहर चली गयी और हाल में सलील को उसके स्कूल का होमवर्क कराने लगी। सानिया ने काँपते हुए हाथों से उस डिस्क को डी-वी-डी प्लेयर में डाल कर ऑन कर दिया। सानिया ने पोर्न कहानियाँ-किस्से तो खूब पढ़े थे लेकिन पोर्न मूवी कभी नहीं देखी थी। उस डीवीडी में बहुत सारे थ्रीसम और फ़ोरसम सीन थे जिनमें दर्मियानी उम्र की दो या तीन औरतें मिलकर किसी जवान लड़के के साथ चुदाई के मज़े ले रही थीं। एक सीन में तो माँ और बेटी मिलकर एक लड़के से चुदवा रही थीं। सानिया की हालत ये सब देख कर खराब हो गयी। सानिया का अब सैक्स के जानिब नज़रिया बदल गया था। ना जाने क्यों उसके दिमाग में अजीब -अजीब तरह के ख्याल आने लगे... वो वहाँ से उठ कर अपने घर आ गयी और आते ही अपने कमरे में जाकर दरवाजा बंद करके नंगी हो गयी और बहोत देर तक मोमबत्ती अपनी चूत में डाल कर काफ़ी देर तक अपनी हवस की आग बुझाने की कोशिश करती रही।
उसके बाद ऐसे ही करीब एक महीना और गुज़र गया। सुनील तो अपना मन रशीदा और नफ़ीसा के साथ बाहर बहला रहा था लेकिन रुखसाना और सानिया का बुरा हाल था। दोनों के ज़हन में अब हर वक़्त चुदाई का नशा सवार रहता था। सुनील से चुदवाने के बाद अब सानिया को हर वक़्त अपनी चूत में खालीपन महसूस होता था और रुखसाना को तो पहले से ही सुनील के लंड का ऐसा चस्का लग चुका था कि उसके दिन और रात बड़ी मुश्किल से कट रहे थे। रुखसाना तो फिर भी कभी-कभार सुनील के साथ जल्दबज़ी वाली थोड़ी-बहुत चुदाई में कामयाब हो जाती थी लेकिन सानिया को तो सुनील के साथ थोडी छेड़छाड़ या चूमने-चाटने से ज्यादा मौका नहीं मिल पाता था। रुखसाना भले ही सानिया की हालत से अंजान थी पर अब उसे सानिया के चेहरे पर किसी चीज़ की कमी होने का एहसास होने लगा था।
इसी दौरान एक वाक़िया हुआ जिससे रुखसाना की ज़िंदगी में वापस बहारें लौटने लगीं। रशीदा की ट्राँसफ़र की अर्ज़ी रेलवे में मंज़ूर हो गयी और उसकी पोस्टिंग कोलकत्ता में हो गयी। रशीदा के जाने के बाद भी सुनील का नफ़ीसा के साथ रिश्ता पहले जैसा ही बना रहा। रुखसाना ने इन दिनों नोटिस किया कि सुनील अब पहले की तरह उसमें फिर से काफी दिलचस्पी लेने लगा था... अब वो खुद से कोई ऐसा मौका नहीं छोड़ता था। जब रुखसाना उसे दो-तीन मिनट के लिये भी अकेली दिख जाती तो वो मौका देख कर कभी उसे बाहों में जकड़ के चूम लेता तो कभी उसकी सलवार के ऊपर से उसकी फुद्दी को मसल देता।
तभी एक और वाक़िया हुआ जिसने रुखसाना के सोचने का नज़रिया ही बदल दिया। एक दिन रुखसाना नज़ीला के घर गयी। सुबह के ग्यारह बजे का वक़्त था। फ़ारूक और सुनील दोनों जॉब के लिये जा चुके थे और सानिया भी कॉलेज गयी हुई थी। रुखसाना को आइब्राउ बनवानी थी तो उसने सोचा कि नज़ीला भाभी से थ्रेडिंग के साथ-साथ फ़ेशियल भी करवा लेती हूँ। वैसे तो वो खुद ये सब करने में माहिर थी लेकिन आइब्राउ क्योंकि खासतौर पे खुद बनाना आसान नहीं होता इसलिये वो अक्सर नज़ीला से थ्रेडिंग करवाती थी। नज़ीला तो वैसे भी अपने घर में ही ब्यूटी पार्लर चलाती थी। रुखसाना ने घर का काम निपटाया और अपने घर को बाहर से लॉक करके नज़ीला के घर की तरफ़ गयी। जैसे ही वो नज़ीला के घर का गेट खोल कर अंदर गयी तो सामने गैराज का दरवाजा खुला हुआ था जिसमें नज़ीला का ब्यूटी-पार्लर था। रुखसाना ब्यूटी-पार्लर में घुसी तो वहाँ कोई नहीं था। रुखसाना ने देखा कि पार्लर में से घर के अंदर जाने वाला दरवाजा हल्का सा खुला हुआ था। रुखसाना और नज़ीला अच्छी सहेलियाँ थीं और वैसे भी नज़ीला इस वक़्त घर में अकेली होती थी तो रुखसाना बिना कुछ बोले अंदर चली गयी। अंदर एक दम सन्नाटा पसरा हुआ था लेकिन नज़ीला के बेडरूम से कुछ आवाज़ आ रही थी। नज़ीला की खुशनुमा आवाज़ सुन कर रुखसाना उसके बेडरूम के ओर बढ़ी... और जैसे ही वो बेडरूम के डोर के पास पहुँची तो रुखसाना की आँखें फटी की फटी रह गयीं।
नज़ीला ड्रेसिंग टेबल पर झुकी हुई थी और उसने ने अपनी कमीज़ को अपनी कमर तक उठा रखा था... उसकी सलवार उसकी टाँगों से निकली हुई उसके पैरों में ज़मीन पर थी और सफ़ेद रंग की पैंटी उसकी रानों तक उतारी हुई थी और एक लड़का जो मुश्किल से पंद्रह-सोलह साल का था... उसके पीछे खड़ा हुआ था। उस लड़के का लंड नज़ीला की गोरी फुद्दी के लबों के दर्मियान फुद्दी में अंदर-बाहर हो रहा था और उस लड़के ने नज़ीला के चूतड़ों को दोनों तरफ़ से पकड़ा हुआ था जिन्हें वो बुरी तरह से मसल रहा था। तभी नज़ीला की मस्ती से भरी आवाज़ पूरे कमरे में गूँज उठी।
नज़ीला: "आआहहहह आफ़्ताब ओहहह आहहह बाहर ब्यूटी-पार्लर खुला हुआ है... मेरी कस्टमर्स आकर लौट जायेंगी... एक बजे पार्लर बंद करने के बाद दोपहर में फिर आराम से कर लेना जो करना है!"
आफ़्ताब: "आआहह खाला... मुझे सब्र नहीं होता... मैं क्या करूँ... जब भी हाई हील वाली सैंडलों में आपकी मटकती गाँड देखता हूँ तो मेरा लौड़ा खड़ा हो जाता है और सलील भी दो बजे स्कूल से आ जायेगा.... मुझे आपकी फुद्दी मारने दो ना... आप ने तो कल खालू से चुदवा लिया होगा ना...!
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नज़ीला: "वो क्या खाक चोदता है मुझे.... तेरे खालू का लंड तो ठीक से खड़ा भी नहीं होता... मुझे तो तेरे जवान लंड की लत्त लग गयी है... बस मैं एक घंटे में पार्लर बंद कर दुँगी... फिर जितनी देर करना हो कर लेना!"
पूरे कमरे में फ़च-फ़च जैसी आवाज़ गूँज रही थी। रुखसाणा ने देखा कि नज़ीला सिर्फ़ ऊपर से मना कर रही थी... वो पूरी मस्ती में थी और अपनी गाँड को पीछे की तरफ़ धकेल-धकेल कर आफ़्ताब से चुदवा रही थी। तभी अचानक से रुकसाना हिली तो उसका सैंडल बेड रूम के दरवाजे से टकरा गया। आवाज़ सुनकर दोनों एक दम से चौंक गये। जैसे ही नज़ीला ने रुखसाना को डोर पर खड़े देखा तो उसके चेहरे का रंग एक दम से उड़ गया। उस लड़के की हालत और भी पत्तली हो गयी और उसने जल्दी से अपने लंड को बाहर निकाला और अटैच बाथरूम में घुस गया। नज़ीला ने जल्दी से अपनी पैंटी ऊपर की और फ़ौरन अपनी सलवार उठा कर पहनी और घबराते हुए काँपती हुई आवाज़ में बोली, "अरे रुखसाना... तुम तुम कब आयीं?" फिर वो रुकसाना के पास आयी और उसका हाथ पकड़ कर उसे ड्राइंग रूम में ले गयी और उसे सोफ़े पर बिठाया। वो कुछ कहना चाह रही थी पर शायद नज़ीला को समझ नहीं आ रहा था कि वो रुखसाना से क्या कहे.... कैसे अपनी सफ़ाई दे! "ये सब क्या है नज़ीला भाभी...?" रुखसाना ने नज़ीला के चेहरे की ओर देखते हुए पूछा।
नज़ीला गिड़गिड़ा कर मिन्नत करते हुए बोली, "रुखसाना यार किसी को बताना नहीं... तुझे अल्लाह का वास्ता... वर्ना मैं कहीं की नहीं रहुँगी... मेरा घर बर्बाद हो जायेगा... प्लीज़ किसी को बताना नहीं... मैं बर्बाद हो जाऊँगी अगर ये बात किसी को पता चल गयी तो!" नज़ीला के हाथ को अपने हाथों में लेकर तसल्ली देते हुए नज़ीला बोली, "भाभी आप घबरायें नहीं... मैं नहीं बताती किसी को... पर ये सब है क्या और वो लड़का कौन है..?"
नज़ीला बोली, "मैं बताती हूँ... तुझे सब बताती हूँ... पर ये बात किसी को बताना नहीं... तू अभी अपने घर जा... मैं थोड़ी देर में तेरे घर आती हूँ!" नज़ीला की बात सुनकर रुखसाना बिना कुछ बोले वहाँ से उठ कर अपने घर आ गयी और आते ही अपने रूम में बेड पर लेट गयी। थोड़ी देर पहले जो नज़ारा उसने देखा था वो बहुत ही गरम और भड़कीला था। एक पंद्रह-सोलह साल का लड़का एक पैंतीस साल की औरत को पीछे से उसके चूतड़ों से पकड़े हुए चोद रहा था... और नज़ीला भी मस्ती में अपनी गाँड उसके लंड पर धकेल रही थी। रुखसाना का बुरा हाल था... उसकी चूत में अंदर तक सनसनाहट हो रही थी और चूत से पानी बह कर उसकी पैंटी को भिगो रहा था। रुखसाना करीब आधे घंटे तक वैसे ही लेटी रही और सोच-सोच कर गरम होती रही और अपनी सलवार के अंदर हाथ डाल कर पैंटी के ऊपर से अपनी फुद्दी को मसलती रही। करीब आधे घंटे बाद बाहर डोर-बेल बजी तो रुखसाना बदहवास सी खड़ी हुई और बाहर जाकर दरवाजा खोला। सामने नज़ीला खड़ी थी और उसके चेहरे का रंग अभी भी उड़ा हुआ था। रुखसाना ने नज़ीला को अंदर आने के लिये कहा और फिर दरवाजा बंद करके उसे अपने कमरे में ले आयी। नज़ीला अंदर आकर रुखसाना के बेड पर नीचे पैर लटका कर बैठ गयी। खौफ़ उसके चेहरे पे साफ़ नज़र आ रहा था। रुखसाना ने उसे चाय पानी के लिये पूछा तो उसने मना कर दिया।
"नज़ीला भाभी जो हुआ उसे भूल जायें... आप समझ लें कि मैंने कुछ देखा ही नहीं है... मैं ये बात किसी को नहीं बताऊँगी... आप बेफ़िक्र रहें!" रुखसाना की बात सुनते ही नज़ीला की आँखें नम हो गयीं। रुखसाना समझ नहीं पा रही थी कि ये आँसू सच में पछतावे के थे या नज़ीला मगमच्छी आँसू बहा कर उसे जज़बाती करके ये मनवा लेना चाहती थी कि रुखसाना उसकी फ़ासिक़ हर्कत के बारे में किसी को ना बताये। "रुखसाना मैं जानती हूँ कि तू ये बात किसी को नहीं बतायेगी... पर फिर भी मेरे दिल में कहीं ना कहीं डर है... इसलिये मुझे घबराहट हो रही है...!" नज़ीला बोली।
रुखसाना ने उसे फिर तसल्ली देते हुए कहा, "नज़िला भाभी आप घबरायें नहीं... मैं नहीं बताती किसी को... पर ये सब है क्या... और वो लड़का तो आप को खाला बुला रहा था ना..? क्या वो सच में आपका भांजा है..?" थोड़ी देर चुप रहने के बाद नज़ीला बोली, "हाँ वो मेरी बड़ी बेहन का बेटा है...!" नज़ीला की बात सुन कर रुखसाना एक दम से हैरान हो गयी, "क्या... क्या सच कह रही हैं आप... पर ये सब आप ने.... ये सब कैसे... क्यों किया..?"
नज़ीला ने अपनी दास्तान बतानी शुरू की, "अब मैं तुझे क्या बताऊँ रुखसाना... तू इसे मेरी मजबूरी समझ ले या फिर मेरी जरूरत... हालात ही कुछ ऐसे हो गये थे कि मैं खुद को रोक ना सकी... शादी के बाद से ही हमारी सैक्स लाइफ़ बस सो-सो थी और फिर धीरे-धीरे हमारी सैक्स लाइफ़ कमतर होती गयी... इसीलिये सलील भी हमारी शादी के कईं सालों बाद पैदा हुआ... ऊपर से इन्हें ब्लडप्रेशर और डॉयबिटीस भी हो गयी... और सैक्स में इनकी दिलचस्पी बिल्कुल खतम हो गयी... हमारी सैक्स लाइफ़ बिल्कुल खतम हो चुकी थी... तुझे तो अच्छे से मालूम होगा कि बिना मर्द के प्यार के रहना कितना मुश्किल होता है... पर मैं अपनी सारी ख्वाहिशें मार के जीती रही। सलील की देखभाल और ब्यूटी पार्लर में दिन का वक़्त तो कट जाता था पर रातों को बिस्तर पे करवटें बदलती रहती थी... इन्हें तो जैसे मेरी कोई परवाह ही नहीं थी... फिर मुझे अपनी एक फ्रेंड से ब्लू-फ़िल्में मिल गयी तो उन्हें देख कर मेरे अंदर की आग और भड़कने लगी... मुझे खुद-लज़्ज़ती की लत्त लग गयी और अकेले में ब्लू-फिल्में देखते हुए मैं अपनी चूत को मसल कर और केले और दूसरी चीज़ों के ज़रिये अपनी चूत के आग को बुझाने की कोशिश करने लगी। पर खुद-लज़्ज़ती में असली सैक्स वाली तसल्ली कहाँ हो पाती है! फिर एक दिन मेरी ज़िंदगी तब बदल गयी जब आफ़्ताब हमारे यहाँ गर्मी की छुट्टियों में रहने आया... वो उस वक़्त नौवीं क्लास में था। अब्बास भी सुबह ही काम पर चले जाते थे या फिर वही उनके हफ़्ते-हफ़्ते के टूर पे.... सब कुछ नॉर्मल चल रहा था... सलील और आफ़्ताब के घर में होने से मेरा भी दिल लगा हुआ था... फर एक दिन सब कुछ बदल गया!"
रुखसाना बड़े गौर से नज़ीला की दास्तान सुन रही थी जो हूबहू उसकी खुद की ज़िंदगी की कहानी थी। नज़ीला ने आगे बताया, "वो दिन मुझे आज भी अच्छे से याद है... अब्बास ऑफिस जा चुके थे... सलील को नाश्ता देने के बाद मैं आफ़्ताब को उठने के लिये गयी... वो तब तक सो रहा था... मैं जैसे ही कमरे में गयी तो मैंने देखा कि आफ़्ताब बेड पर बेसुध सोया हुआ था और वो सिर्फ़ अंडरवियर में था। उसका अंडरवियर सामने से उठा हुआ था और उसका लंड उसके अंडरवियर में बुरी तरह तना हुआ था... मेरी तो साँसें ही अटक गयीं... उस दिन से पहले मैं आफ़्ताब को अपने बेटे जैसा ही समझती थी पर उसके अंडरवियर के ऊपर से उसका तना हुआ लंड देख कर मेरे जिस्म में झुरझुरी से दौड़ गयी... उसका लंड पूरी तरह तना हुआ अंडरवियर को ऊपर उठाये हुए था... मैं एक टक जवान हो रहे अपने भाँजे के लंड को देख कर गरम होने लगी... पता नहीं कब मेरा हाथ मेरी सलवार के ऊपर से मेरी चूत पर आ गया और मैं उसके अंडरवियर में बने हुए टेंट को देखते हुए अपनी चूत मसलने लगी... मेरी चूत बुरी तरह से पनिया गयी... मेरा बुरा हाल हो चुका था... तभी बाहर से सलील के पुकारने की आवाज़ आयी तो मैं होश में आयी और बाहर चली गयी। आफ़्ताब गर्मियों की वजह से शॉर्ट्स पहने रहते था।"
"मेरे जहन में बार-बार आफ़्ताब का वो अंडरवियर का उभरा हुआ हिस्सा आ रहा था... उसी दिन दोपहर की बात है... आफ़्ताब, मैं और सलील उस वक़्त मेरे ही बेडरूम में टिवी देख रहे थे क्योंकि हमारे बेडरूम में ही एयर कंडिशनर लगा हुआ है। टिवी देखते हुए हम तीनों बेड पर लेटे हुए थे। बाहर बहोत तेज धूप और गरमी थी और एक दम सन्नाटा पसरा हुआ था। बेडरूम में खिड़कियों पर पर्दे लगे हुए थे और डोर बंद था... बस सिर्फ़ टीवी की हल्की रोशनी आ रही थी जिस पर आफ़्ताब लो-वॉल्युम में कोई मूवी देख रहा था। मैं सबसे आखिर में दीवार वाली साइड पे लेटी हुई थी। इतने में टीवी पे एक रोमांटिक उत्तेजक गाना आने लगा जिसमें हीरो-हिरोइन बारिश में भीग कर गाना गाते हुए एक दूसरे से चिपक रहे थे। हिरोइन का व्लाऊज़ बेहद लो-कट था जिस्में से उसकी चूचियाँ बाहर झाँक रही थीं।"
"मैंने नोटिस किया कि आफ़्ताब चोर नज़रों से मेरी छाती की तरफ़ देख रहा था। मेरे पूरे जिस्म में झुरझुरी दौड़ गयी और मेरी चूत में फिर से कुलबुलाहट होने लगी। जब उसने फिर तिरछी नज़र से मेरी तरफ़ देखा तो मैंने मस्ती वाले अंदाज़ में आफ़्ताब को पूछा जो कि वो क्या देख रहा था तो शरमा गया और एक दम से टिवी की तरफ़ देखते हुए बोला कि कुछ नहीं! इस दौरान मैं जानबूझ कर अपनी लो-कट गले वाली कमीज़ के ऊपर से अपनी चूची सहलाने लगी। आफ़्ताब चोर नज़रों से फिर मेरी तरफ़ देखने लगा। मैं जानती थी कि उसकी नज़र मेरे चूचियों पर थी और वो कभी टीवी की ओर देखता तो कभी मेरी ओर! फिर मैंने बैठ कर सलील को दीवार वाली साइड पे खिसका दिया और खुद आफ़्ताब की तरफ़ करवट करके लेट गयी। लेकिन इस दौरान मैंने अपनी कमीज़ थोड़ी और खिसका दी जिससे मेरी ब्रा और एक चूची काफ़ी हद तक नुमाया होने लगी। आफ़्ताब की आँखें फटी रह गयीं। मैंने आफ़्ताब से पूछा कि मैं क्या उसे उस हिरोइन से ज्यादा हसीन लग रही हूँ जो वो टिवी छोड़ कर बार-बार मुझे ताक रहा है। आफ़्ताब मेरी बात सुन कर शरमा कर मुस्कुराने लगा तो मैंने फिर अपने मम्मे को मसलते हुए उससे पूछा कि मैं उसे हसीन लग रही हूँ कि नहीं। आफ़्ताब हसरत भरी नज़रों से मेरी जानिब देखने लगा तो मैंने इस बार कातिलाना अंदाज़ में मुस्कु?
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204
Published:
May 2024
Schifter-Sikora, who is recognized as one of the leading Latin American authors in the field of sexuality, offers an autobiographical novel that also reveals ...
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