आत्मसम्म न की आदत ड ि जीिन सिि कर के आर्गे बढ़कर
जीन सीख
इस जीिन क र्गर खुि कर जीन है त अर्ने आर् से िर्गन िर्ग न
सीख
आिसी ह न स रे म नि क शत्रु है त र्ुरुर्ष थप क अर्न वमत्र
बन न सीख
इस जीिन क रहस्य यही है वजन ख ज वतन र् य क सही मतिब
क सीख
म न की ये वजांदर्गी हम सब की बड़ी हसीन रहेर्गी जब हम उस से
प्य र करेंर्गे
अर्गर ह ज ए कभी इस वजांदर्गी में र त तब विर नए सबेर क
इांतज़ र करेंर्गे
तब ि र्ि भी आज येर्ग वजस समय क हम बड़े उत्सुकत से
इांतज़ र करेंर्गे
बस इतन य द रखन है की प्रभु र्र भर स और अर्ने िक़्त र्े
एतब र करेंर्गे
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16
क वशश करते रहन बबुि
बुजुर्गों ने कह थ क वशश करते रहन एक न एक वदन हि
वनकिेर्ग बबुि
र्गर आज नहीां त कि तुझे सिित वमिेर्ग क ई भी वफ़क्र मत
करन बबुि
कड़े मेहनत से मरुस्थि से भी जि वनक ि िेते हैं ि र्ग इसे य द रख
बबुि
मेहनत कर जीिन के र्ौध ां क र् नी दे बांजर जमीन से िि
वनकिेर्ग बबुि
बस अर्ने सही त कत क जुट िे वहम्मत क अर्न धधकत आर्ग दे
बबुि
कड़ से कड़ िौि द क भी तय अर्ने च हत से बि वनक ि सकत है
बबुि
वजन्द रख अर्ने सभी उम्मीद ां क र्गहरे समुन्दर में भी र्गांर्ग जि
वमिेर्ग बबुि
क वशश ज री रखन सद कुछ कर र्गुजरने की ज आज थम ि
चिेर्ग बबुि |
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हम री ख्व वहशें
हम री ख्व वहशें त बहुत है इस जीिन की त अब उनक ज वहर
करत हूँ
हम री सब से र्हिी ख्व वहश है की मैं ख़ुशी और सुख से जीन
च हत हूँ
इस छ टी सी जीिन में मैं सद अर्ने ि र्ग ां से उनक प्य र आदर
च हत हूँ
जब तक है वजांदर्गी िुसपत न ह र्गी क म से सबसे वमिजुि के रहन
च हत हूँ
धन दौित म ि खज ने की ख्व वहश त अब भी नहीां है और न ही
कभी रहेर्गी
वजतन भी मुझक कुदरत ने वदय है िही ही हम रे जीने के विए
बहुत रहेर्गी
र् ररि ररक जन और भक्तिम न वमांत्र ां की कृर् रहे यही ख्व वहश है
हम री
मेरे र ह ां में क ई क ांटे न वबछ ए और दुुः ख न दे बस यही रहेर्गी च हत
हम री
इस जीिन की सिर क सही से र्यरी कर चयक हूँ ज बची है ि भी
सि मत रहे
र्र ख्व वहश ये भी है की मैं भी सुख से जीत रहूँ और दयसरे भी ख़ुशी
से जीते रहे
क ई उद स मौसम न आये शेर्ष वजांदर्गी में और हर िक़्त मैं हूँसत
खेित ही रहूँ
हम रे अर्ने ि र्ग हमक ऐसे ही सह र देतें रहें और मैं भी उनक
र्हच नत रहूँ
हम रे ख़ुशी जीिन की ब ररशें जब भी वछड़ें तब इस वदि वदम र्ग के
त र क्तखि उठें
र्गर क ई अर्नी उूँर्गविय ां से मेरे तन मन क सहि ये त हम रे वदि
में भी तरांर्गें उठें
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अर्ने प्य रे ि र्ग ां की नज़र और नजररय हम क सद उनके क वबि
समझती रहें
जब हम रे नज़रें उठें त हम उन सबके ह ज ियूँ जब ि झुकें त सब
हम रे ही रहें
इस जीिन में मुझक कह ूँ थी िुसपत क म ध म और अर्ने जीिन के
सब वनि पह से
िेवकन मैं सद से कुछ एस जरर करत रह और िर्गन िर्ग य थ
श्री र म जी से
अब जब हम री उमररय भी ढि रही है त वकतने ख्व वहशें भी अब
कम ह र्गए हैं
र्र यह वजांदर्गी त वजन्द वदिी क न म थ अब सब ख्व वहशें भी
वजांदर्गी के न म हैं
एक अटि ख्व वहश सद से थी हम री की हम र र्ररि र सद सुखी
और ख़ुशी रहे
इस ख्व वहश क भी हमने ऐस वनभ य और जत य की हम सब
सद सुखी ही रहे
हम रे र्ररि र क दयसर न म प्य र ही थ वजसक हम सब ने
वमिजुि के वनभ य है
हम सब अर्ने र्ररि र क उर्युि समय देकर प्रेम और वबश्व स क
ररश् बन य है
इतन जरर थ की इस वजांदर्गी के भ र्ग दौड़ में भी हम ने अर्ने सभी
क ख़ुशी रख है
इन ख्व वहश ां क और भी मज़बयत बन ने के विए मेरे र् ररि ररक
ि र्ग क वशश वकये हैं
हम र यह चमन सद सुखी और खुश रहे मैं त अब अर्ने अांवतम
सिर र्र ज रह हूँ
क ई भयि चयक अनज ने में ह र्गई ह त मैं ह ूँथ ज ड़ के सर झुक के
म फ़ी म ांर्गत हूँ |
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चित चि ि िीर हमसफ़र
हम र यह वदि नउम्मीद त नही ां है र्र ह ूँ थ ड़ न क म जरर ह ज त है
इस जीिन क सिर थ ड़ िम्ब है त र्गम भी थ मर्गर आर म वमि ज त है |
मेरे जीिन क सिर कुछ कुछ कवठन ईय ां से भर थ मर्गर उद सी नही ां थी
सिि हमसफ़र के तरह हम चिते रहे और बहुत कुछ स च वफ़क्र नही ां थी
कई दुख ां के वदन और वकतने वसतम के र त आये र्र िे ढिते रहे हम ने
वहम्मत रक्खी
जब अूँधेर ह त थ जीिन में और र्गम वर्घिने क न म नही ां त भी हम ने
वहम्मत रक्खी
कभी कभी इस के विए कुछ देर िर्गती थी िेवकन हम ने इस जीिन में अूँधेर
नही ां ि य
क् ां की हमने उद सी और न उम्मीद ां क सद दयर भ र्गत रह और इस से
ि भ उठ य
मैं ज नत थ की सद रहने ि िे नही ां हैं िे सभी मुक्तििें अर्गिे म ड़ र्े थी
मेरी मांवज़िें
मैंने अर्ने वदि और वदम र्ग क समझ य की यकीन कर हम रे ब त र्र
वमिेर्गी मांवज़िें
बस चित चि तय वहम्मत और उम्मीद ां क िे कर कभी उद स न ह न ि मेरे