Kavitanjali by Dr Ram Lakhan Prasad - HTML preview

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समझ

आत्मसम्म न की आदत ड ि जीिन सिि कर के आर्गे बढ़कर

जीन सीख

इस जीिन क र्गर खुि कर जीन है त अर्ने आर् से िर्गन िर्ग न

सीख

आिसी ह न स रे म नि क शत्रु है त र्ुरुर्ष थप क अर्न वमत्र

बन न सीख

इस जीिन क रहस्य यही है वजन ख ज वतन र् य क सही मतिब

क सीख

म न की ये वजांदर्गी हम सब की बड़ी हसीन रहेर्गी जब हम उस से

प्य र करेंर्गे

अर्गर ह ज ए कभी इस वजांदर्गी में र त तब विर नए सबेर क

इांतज़ र करेंर्गे

तब ि र्ि भी आज येर्ग वजस समय क हम बड़े उत्सुकत से

इांतज़ र करेंर्गे

बस इतन य द रखन है की प्रभु र्र भर स और अर्ने िक़्त र्े

एतब र करेंर्गे

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क वशश करते रहन बबुि

बुजुर्गों ने कह थ क वशश करते रहन एक न एक वदन हि

वनकिेर्ग बबुि

र्गर आज नहीां त कि तुझे सिित वमिेर्ग क ई भी वफ़क्र मत

करन बबुि

कड़े मेहनत से मरुस्थि से भी जि वनक ि िेते हैं ि र्ग इसे य द रख

बबुि

मेहनत कर जीिन के र्ौध ां क र् नी दे बांजर जमीन से िि

वनकिेर्ग बबुि

बस अर्ने सही त कत क जुट िे वहम्मत क अर्न धधकत आर्ग दे

बबुि

कड़ से कड़ िौि द क भी तय अर्ने च हत से बि वनक ि सकत है

बबुि

वजन्द रख अर्ने सभी उम्मीद ां क र्गहरे समुन्दर में भी र्गांर्ग जि

वमिेर्ग बबुि

क वशश ज री रखन सद कुछ कर र्गुजरने की ज आज थम ि

चिेर्ग बबुि |

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हम री ख्व वहशें

हम री ख्व वहशें त बहुत है इस जीिन की त अब उनक ज वहर

करत हूँ

हम री सब से र्हिी ख्व वहश है की मैं ख़ुशी और सुख से जीन

च हत हूँ

इस छ टी सी जीिन में मैं सद अर्ने ि र्ग ां से उनक प्य र आदर

च हत हूँ

जब तक है वजांदर्गी िुसपत न ह र्गी क म से सबसे वमिजुि के रहन

च हत हूँ

धन दौित म ि खज ने की ख्व वहश त अब भी नहीां है और न ही

कभी रहेर्गी

वजतन भी मुझक कुदरत ने वदय है िही ही हम रे जीने के विए

बहुत रहेर्गी

र् ररि ररक जन और भक्तिम न वमांत्र ां की कृर् रहे यही ख्व वहश है

हम री

मेरे र ह ां में क ई क ांटे न वबछ ए और दुुः ख न दे बस यही रहेर्गी च हत

हम री

इस जीिन की सिर क सही से र्यरी कर चयक हूँ ज बची है ि भी

सि मत रहे

र्र ख्व वहश ये भी है की मैं भी सुख से जीत रहूँ और दयसरे भी ख़ुशी

से जीते रहे

क ई उद स मौसम न आये शेर्ष वजांदर्गी में और हर िक़्त मैं हूँसत

खेित ही रहूँ

हम रे अर्ने ि र्ग हमक ऐसे ही सह र देतें रहें और मैं भी उनक

र्हच नत रहूँ

हम रे ख़ुशी जीिन की ब ररशें जब भी वछड़ें तब इस वदि वदम र्ग के

त र क्तखि उठें

र्गर क ई अर्नी उूँर्गविय ां से मेरे तन मन क सहि ये त हम रे वदि

में भी तरांर्गें उठें

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अर्ने प्य रे ि र्ग ां की नज़र और नजररय हम क सद उनके क वबि

समझती रहें

जब हम रे नज़रें उठें त हम उन सबके ह ज ियूँ जब ि झुकें त सब

हम रे ही रहें

इस जीिन में मुझक कह ूँ थी िुसपत क म ध म और अर्ने जीिन के

सब वनि पह से

िेवकन मैं सद से कुछ एस जरर करत रह और िर्गन िर्ग य थ

श्री र म जी से

अब जब हम री उमररय भी ढि रही है त वकतने ख्व वहशें भी अब

कम ह र्गए हैं

र्र यह वजांदर्गी त वजन्द वदिी क न म थ अब सब ख्व वहशें भी

वजांदर्गी के न म हैं

एक अटि ख्व वहश सद से थी हम री की हम र र्ररि र सद सुखी

और ख़ुशी रहे

इस ख्व वहश क भी हमने ऐस वनभ य और जत य की हम सब

सद सुखी ही रहे

हम रे र्ररि र क दयसर न म प्य र ही थ वजसक हम सब ने

वमिजुि के वनभ य है

हम सब अर्ने र्ररि र क उर्युि समय देकर प्रेम और वबश्व स क

ररश् बन य है

इतन जरर थ की इस वजांदर्गी के भ र्ग दौड़ में भी हम ने अर्ने सभी

क ख़ुशी रख है

इन ख्व वहश ां क और भी मज़बयत बन ने के विए मेरे र् ररि ररक

ि र्ग क वशश वकये हैं

हम र यह चमन सद सुखी और खुश रहे मैं त अब अर्ने अांवतम

सिर र्र ज रह हूँ

क ई भयि चयक अनज ने में ह र्गई ह त मैं ह ूँथ ज ड़ के सर झुक के

म फ़ी म ांर्गत हूँ |

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चित चि ि िीर हमसफ़र

हम र यह वदि नउम्मीद त नही ां है र्र ह ूँ थ ड़ न क म जरर ह ज त है

इस जीिन क सिर थ ड़ िम्ब है त र्गम भी थ मर्गर आर म वमि ज त है |

मेरे जीिन क सिर कुछ कुछ कवठन ईय ां से भर थ मर्गर उद सी नही ां थी

सिि हमसफ़र के तरह हम चिते रहे और बहुत कुछ स च वफ़क्र नही ां थी

कई दुख ां के वदन और वकतने वसतम के र त आये र्र िे ढिते रहे हम ने

वहम्मत रक्खी

जब अूँधेर ह त थ जीिन में और र्गम वर्घिने क न म नही ां त भी हम ने

वहम्मत रक्खी

कभी कभी इस के विए कुछ देर िर्गती थी िेवकन हम ने इस जीिन में अूँधेर

नही ां ि य

क् ां की हमने उद सी और न उम्मीद ां क सद दयर भ र्गत रह और इस से

ि भ उठ य

मैं ज नत थ की सद रहने ि िे नही ां हैं िे सभी मुक्तििें अर्गिे म ड़ र्े थी

मेरी मांवज़िें

मैंने अर्ने वदि और वदम र्ग क समझ य की यकीन कर हम रे ब त र्र

वमिेर्गी मांवज़िें

बस चित चि तय वहम्मत और उम्मीद ां क िे कर कभी उद स न ह न ि मेरे