Kavitanjali by Dr Ram Lakhan Prasad - HTML preview

PLEASE NOTE: This is an HTML preview only and some elements such as links or page numbers may be incorrect.
Download the book in PDF, ePub, Kindle for a complete version.

म र

39

Image 27

40

आि चि अब कुछ र्ुर ने द स्त ां के दरि जे क खटखट ते हैं

देखतें हैं की उनके भी र्ांख अब थक चुकें य िड़िड़ ते ही हैं

क् अभी भी िे हूँसतें हैं क्तखिक्तखि के य केिि मुस्कुर ते हैं

क् िे बत तें है अर्नी सब आर्बीती य सिि कह नी ही है

क् हम र चेहर देख कर िे मुझक ठीकसे र्हच न ज तें हैं

य विर अर्ने घडी के ओर देख के हमक ज ने क कहतें हैं

हम त द स्त सद के विए बने थे कभी न र ज ही नहीां ह ते थे

कभी हम से भयि ह र्गयी त हम एक दयसरे क म फ़ करते थे

ररश् टयट ज ए त तुरांत विर से ज ड़ने की क वशश करते थे

यही सब त हम रे द स्ती क सियक थ हम ऐसे ही वनभ ते थे

हम रे द स्त ां ने हम क यह ूँ जीने क सही रांर्ग ढांर्ग वशक ये थे

उन्ी ां के क रण हम भी सब बुरे िक़्त ां में खयब मौज उड़ ते थे

अर्गर हम रे द स्त थे त स रे दुुः ख और र्गम भी अच्छे रहते थे

उन सब के वबन हम रे सभी तरह के ध र्गे भी कच्चे रहते थे

ये वजांदर्गी क सही जीने क मज त उनके स थ ही रहते थे

ि सब र स्त ां के मस्ती र् ठश ि के मैद न बर्गीच ां में घयमन

आज भी ि सब य द हैं हम क ि ख़ुशी मुक्तिि है भयिन

यही त द स्ती क र ज है और हम रे बचर्न की थी ि य री

उन शुभ वदन ां की वजांदर्गी जी थी उसके ब त बस थी र्गुज री

40

41

क् कहूँ

अब और क् कहूँ बस इतन ही कथन रह र्गय है हम रे समझ से

अब थक र्गय हूँ मैं भी अर्ने इस वजांदर्गी के सभी आजम इश ां से

वफ़क्र बस इतन है की ख़तम नहीां ह ती है उसकी िरम इश ां से

अब हम री इतनी सी र्गुज ररश है करदे मेरी वसर् ररश र्रम त्म से

बहुत वदन ां से बेचैन हूँ त मुझे भी कुछ चैन वमि ज ये बस थ ड़ से

सब थक न वमट ज एर्गी और मेरी जीिन क सुकयन वमिेर्ग थ ड़ से

अब म ियम हुआ है की ि ख्व ब सब झयठे थे और ख्व वहशें अधयरी थीां

र्र यह ूँ वजन्द रहने के विए थ ड़ बहुत र्गििहवमय ां की जरुरत थी

श यद इसी विए ि र्ग कहतें हैं अर्गर सच्ची द स्ती ह त ख़ुशी ह ती है

एस न हुि और क ई द स्त स थ न ह त वजांदर्गी एक ि श ह ती है

अर्ने र ह ां में ज न रुकेर्ग , झुकेर्ग , मुड़ेर्ग िही अर्नी ब जी जीतेर्ग

सीन त ने, ह थ ां क वहि ते ज र् ओां बढ़ एर्ग ि सद मुस्कुर एर्ग

मेर तजुब प है की यह ूँ हर एक इांस न की समझ अिर्ग अिर्ग ह ते हैं

जब ज निर कह त िे न र ज ह तें हैं शेर कह त खुश ह ज तें हैं

मैं म नत हूँ की हम र िक़्त हम से कभी भी बेिि ई नही ां करत है

यह भी म नी हुयी ब त है हर एक म नि भी वदि क बुर नहीां ह त है

ज दयसर ां क सद बुर कहते रहतें हैं उनक यह नहीां म ियम ह त है

खुद उनमें वकतनी अच्छ ई और सच्च ई है उनक र्त नहीां चित है

एक मेर नसीहत य द रखन य र वकसी के एहस न क भयिन मत

ज खुद दयसर ां र्र एहस न वकय है उसक कभी य द करन मत

स दर्गी से बढ़ कर इांस न क क ई भी श्रृांर्ग र नही ां ह त है

विनम्रत और दय से बढ़ कर म नि क क ई भी व्य ह र नहीां ह त है

ब त हम री म नि य र क़दम ां में ह दुवनय ऐस क म कर के वदख न

ज़म ने के ि र्ग ां के जुब न से तुम्ह र न म न उतरे ऐस शुभ न म बन न

यह मतिब नहीां की क ई क ि ह र्ग र ह छ ट बड़ अमीर य र्गरीब ह

ज ि र्ग तुम्ह रे स थ डट कर खड़े रहें िही अच्छे है त सद उनक स थ द

सांस र में मौक सभी क वमित है और अच्छ समय सब क आत रहत है

क ई हम रे स थ अर्न च ि चि ज त है क ई सब च ि बद पस्त कर ज त है

जब हमने अर्न किम उठ य थ रचन के विए त मुक्तिि से शब् वमिते थे

र्र जब मेरी क वशश ज री रही तब ति श के दौर न शब् ां की र्गुांज ईश ह ते थे

मैंने इस जीिन में देख है की िक़्त सब क वमित है अर्ने आर् क बदिने क

िेवकन मेर यह तजुब प है की ये वजांदर्गी दुब र नहीां वमिती िक़्त क बदिने क

आज मैं वजन्द हूँ र्र क् ज ने कि क् ह हम र्गुज़र ज एूँ य विर वबछड़ ज येंर्गे

41

Image 28

42

इस विए ज भी विच रध र हमने अर्ने कवित ओां में रक्खें हैं ि सबक य द

रहेंर्गे

इतन जरर कहांर्ग की न र ज न ह न मेरे शर रत ां से ये सब मेरे वदि की र्ुक र

हैं

आज नहीां त कि आर् सब भी हम रे विच र ां की कदर करेंर्गे ये हम र वबस्व स

है

*****

हमने सद से यही च ह है की प्य र इांस न से कर उनके आदत ां से नहीां

अर्गर रठन है रठ उनकी अनुवचत ब त ां से मर्गर रठ उनसे नहीां

अर्गर कुछ भयिन है इस जीिन में भयि उनकी र्गिवतय ां उन्ें नहीां

मैं ये इस विए कहत हूँ क्यांवक ररश् ां से बढ़ के सांस र में और कुछ नहीां