Kavitanjali by Dr Ram Lakhan Prasad - HTML preview

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समझ क समझ

अर्ने कवित ांजवि क रचते समय हम ने बहुत से इांस न क देख है

वकसी के बदन र्े विब स नहीां थे वकसी विब स में इांस न नहीां देख है

वकतने ि र्ग इस सांस र में क ई भी ह ि त ां क नहीां समझने ि िे हैं

विर वकतने त ऐसे हैं ज क ई भी जज्ब त क नहीां समझ सकतें हैं

ये त अर्नी अर्नी ही समझ है की क ई क र क र्गज़ भी समझत है

र्र वकतने यह ूँ ऐसे भी हैं ज श यद मेरे रचन ओां क भी न समझते हैं

समझ समझ कर समझ क समझ समझ समझन भी एक समझ है

समझ समझ कर भी ज न समझे मेरे समझ में त िह न समझ ही है

इस वजांदर्गी में अर्गर तुम अकेिे ह जल्द ही प्य र करन सीख ि

िेवकन अर्गर प्य र कर विय त जल्द इजह र करन भी सीख ि

अर्गर ऐस कुछ भी नहीां कर सक त जीिन भर र न ही सीख ि

भि ह र्ग की ज़म ने के स थ चिते रह और यह ूँ जीन सीख ि

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कह ूँ अटक र्गय है यह मन?

मन बड़ ही चांचि है कभी भटक ज त है त कहीां अटक भी ज त है

कभी ब दि ां में अटक ज त है त कभी धरती र्र भी सटक ज त है

कभी अर्ने प्य रे ि र्ग ां क छय िेत है त कभी उनसे दयर ह ज त है

अक्सर खुिे आसम न में िहर त है और झयम झयम कर ज त भी है

च हे िर्ष प कड़ी धुर् ये मन चटकत और मटकत ही रहत है

च ूँदनी र त ां में खयब क्तखित है और अूँधेरी र त ां से डरने व्ही िर्गत है

इस तरह वदि वदम र्ग क बहि कर आसम न में ब दि ां में झयमत है

कभी अर्न ां क छयकर आत है त र्ुरे तन क खुश करत रहत है

एसे ही मेर मन भी हम रे घर आूँर्गन में चमकत खेित रहत है

इस जीिन में ज भी म नि जब अर्नी र्यरी क वशश ां से ज र िर्ग|त है त र्त्थर

भी वर्घि ज त है

मैंने सद से खुद से जीतने की वजद्द िर्ग रक्खी थी इसी विए मुझे खुद क

हर नेकी च हत रहत है

मैं इस दुवनय में उसकी क ई भीड़ में नहीां हूँ क्यांवक हम रे अांदर स रे ज़म ने क

ख़य ि भर रहत है

हमने ब ांसुरी से सीख थ एक नय सबक की ये वजांदर्गी के सीने में ि ख जखम

ह त भी र्गुनर्गुन त रहत है |

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इस जीिन के ररश्े

म न की यह सांस र भी बड़ अजीब है र्र जब हमक यह र्हच न में

आज येर्गी

की एक वदन यह छ टी सी जीिन एक ऐसे मुक म र्र अर्ने आर्

र्हुूँच ज येर्गी

सभी द स्ती और र्ररि र के ररश्े वसिप हम रे अर्ने य द ां में ही रह

ज एांर्गी

इतन जरर ह र्ग की हर ब त और ह ि त उन सबकी हमक य द

वदि येंर्गी

तब हम य त हसेंर्गे य विर र येंर्गे और तब हम री ये आूँखें नम ह

ज एांर्गी

विर च हे दफ्तर ह य घर आूँर्गन ह उनकी सभी अच्छे करम नज़र

आएूँर्गी

कुछ भी ह यह जीिन चित रहेर्ग र्र र्ैसे कम और खचे ज्य द ह

ज एांर्गी

च हे बजट कर य बे वफ़क्र खचप कर यह वजांदर्गी की र्ग डी चिती ही

ज येर्गी

इस विए य र जीि इस वजांदर्गी के हर र्ि क खयब खुि के नहीां त

र्छत ि र्गे

इस छ टी सी जीिन में द स्त और र्ररि र बड़े बहुमयल्य हैं सब क

छ ड़ ज ओर्गे

तब हम सब क यह वफ़क्र िर्गेर्गी की इस वजांदर्गी के ि र्ि दुब र

नही ां आएांर्गे

र्र तब र्छत ए क् ह र्ग जब हम रे जीिन के सब सुख सांत र् ही

वबर्गड़ ज एांर्गे

जब इस छ टे से जीिन में अर्ने सभी ररश् ां क बरकर र रख कर

चिते ज ओर्गे

जीिन जह ूँ खुवशय ां से भरी रहेर्गी िहीूँ इस सांस र में तुम खयब मजे भी

उठ ओर्गे

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इस वजांदर्गी क कौन च हत है?

हमने इस वजांदर्गी क चिते, दौड़ते, हूँसते, र ते र्ग ते और चमकते भी देख है

कई ब र इसक खुिे सडक ां र्र रेंर्गते हुए भीख म ूँर्गते और वचल्ल ते देख है

मैं ने इस वजांदर्गी क न ज ने वदन में वकतने सुनहरे सर्न क देखते र् य है

जब सर्ने सच नहीां ह ते त इस वजांदर्गी क तड़र्ते रुदन करते भी देख है

मैं ने इस वजांदर्गी क जांर्गि ां में स ते भी देख है भयख से तड़र्ते भी देख है

मैं ने इस वजांदर्गी क कड़े धयर् में अर्ने नांर्गे र् िां चिते और रेंर्गते भी देख है

केिि एक ही टुकड़ र टी के विए इसक अर्न ां से िड़ते झर्गड़ते देख है

िेवकन जब भी इस वजांदर्गी क मैं ने म ूँ के र्ग द में सुख के नीांद स ते देख है

तरस ख य है उनके विए वजनक म ूँ की र्ग द के विए अक्सर तरसते देख है

बहुत खयब र्ते की ब त है की मैं ने इस वजांदर्गी क सस्त सौद ह ते भी देख है

िही वजांदर्गी सिि ह र्गी जब वकसी ने इसक वकसी की भयख वमट ते देख है

हम ने कहीां भीड़ में कई ब र इस वजांदर्गी क तनह और उद स भी देख है

बड़ी तकिीि हुयी मुझे जब भी मैं ने अर्ने ह ांथ ां से इस क जन ज उठ य है

अब इस वजांदर्गी से मैं र्हच न कर ियूँ िरन इस क कब कह ूँ कौन च हत है

मैं यह म नत आय हूँ की ज ि र्ग हम रे बुरे िक़्त में भी हम रे स थ खड़े रहतें हैं

सच ब त यही है की उनसे ज्य द सर्ग ररश्ेद र और क ई भी नहीां ह सकत है

वकतने शब् ां की खुिी वकत ब है वजांदर्गी हम रे खय ि और स ूँस ां क वहस ब है

कुछ जररतें र्यरी हुयी कुछ ख्व वहशें अधयरी इस बुढ़ र्े में इन्ीां सब क जि ब है

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अब हम री भी कुछ सुनिीज मेरे