Kavitanjali by Dr Ram Lakhan Prasad - HTML preview

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समय

हम रे जीिन में समय क बहुत ही महत्व हैं| समय ही कब वकसी क र ज से

रांक और रांक से र ज बन देत हैं| समय वकसी के विए नहीां रुकत हैं| इस

दुवनय में समय और िि क सबसे बड़ बिि न म न र्गय हैं| इसविए हम

ि र्ग ां क समय क कद्र करन च वहए और इसे सही क यप करने में िर्ग न

च वहए|

दुवनय समझती है बेक र वजसे ि ख ट वसक्क ि भी एक वदन चि ज येर्ग

मांवजि चुन कर बढ़ चुक हूँ मैं हौसिे बढ़ रहे हैं मेर समय भी बदि ज एर्ग

िि हैं बदिने के विए र्र वजन्दर्गी दुब र नही वमिती िि बदिने के विए

वकसी की मजबयररय ां र्र मत हूँवसये, मजबयररय नहीां ह ती है खरीदने के विए

डरते रह समय की म र से क् वक बुर समय वकसी क बत के नही आत है

अर्ने समय क उर्य र्ग अच्छे से कर यही ब त इस दुवनय में क म आत है

अभी थ ड िि हैं इस जीिन में जीने क बस अर्ने आर् क आजम ते रह

िक़्त चि र्गय त र -र के भी र्ुक रेंर्गे उसे ि नहीां आएर्ग तुम र्ुक रते रह

य द रहे िि नयर क बेनयर कर देत हैं छ टे से जख् क न सयर कर देत हैं, कौन च हत हैं अर्न ां से दयर ह न ,िेवकन समय सब क मजबयर कर देत हैं।

िि जर्ग त है मेरे जैसे कवि क इस विएअनकही कह वनय ां क सुन त हूँ

अर्न बीत हुआ किक िेकर आय हूँ आने ि िे कि की आश करत हूँ

िि की र्गवत ही है वनवदपष्ट् और वनत ांत ि हर िम्हे क उड़ कर िे ज त है

धीरे-धीरे बदिती है सबकी त कत हम क अर्नी कवठन इय ां क बत त है

वकतन भी समर्पण करि इस जीिन में िि क र्िटन कभी न रुकत है

हम रे इन ब त ां की ज दयर्गरी क समझ ि िि ही सभी िहर ां क चुनत है

िि के आर्गे सब ब दश ही िीकी है िह त म य -म ह की म हर त ड़त है

िक़्त की सही र्हच न हर र ज और रांर्गीन सर्न ां क , ज़मीन र्र बुि त है

जीिन की न ि िि र्र खड़ी ह ती है वकस्मत की कश्ी उसी र्र तैरती है

जैसे र्िटे वदन ां की खेत ां की वमटटी में स्वप् ां की उर्ग ही िसि दीखती है

िि की र्ांख ां से हर ऊूँच ई क चयम , उड़ न भर और सर्न ां क र्कड़

वज़ांदर्गी की मधुरत िि में वछर्ी है उसक महसयस कर और उसे समझ

इस जीिन में समय क सबसे ये कहन है जीिन में सद चिते ही रहन है

इसक ां मत बब पद कर , सद क म की ब त कर 'िखन' क यही कहन है

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िक़्त क ि स्त

य समय क िेर

इस नयी सदी में वमि रही है हमें ददप भरी सौर्ग त

अर्न बेट ही कहने िर्ग ब र् से तेरी क् हैऔक त

अब आूँख ां क आांसयां मर र्गय मर शमप और ि ज

अब बहु कहने िर्गी हैं स स से घर में मेर ही है र ज

मांवदर में ि र्ग र्यज करें र्र घर में करते हैं किेश

अर्न वर्त त ब झ िर्गे र्र र्त्थर िर्गे है र्गणेश

आज स स ससुर ि च र हैं बहु न र्यछे उनक ह ि

ज ए क्लब में सेि करे र्र स स ससुर ह ते है वनह ि

अब त अर्न खयन भी करने िर्ग है बड़ कम ि

ब झ समझ के म ूँ ब र् क घर से देत है वनक ि

म ूँ की ममत वबक रही और वबके वर्त क प्य र

अब वमिते हैं ब ज र में िफ़ क बेचने ि िे य र

भ ई भ ई में अब ह त है अब कुछ एस ही बैर

ररश्े टयटे हैं खयन के और प्य रे िर्गते ज हैं र्गैर

अब ि र्ग ररश् ां क ययूँ त ड़ते जैसे कच्च सयत

अब बटि र म ूँ ब र् क करने िर्गे हैं कर्यत

ज िक़्त र्ड़े र्र स थ दे िही ह ते हैं सच्च य र

िखन सच्चे य र ां के वहत यह जीिन करे वनस र

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इस जीिन के कुछ अद्भुत स थी

हम रे जीिन में धन तभी स थपक ह र्ग जब हम रे धरम करम सब स थ ह ते ह

इसी तरह हम र सब विवशष्ट्त तभी स थपक ह ांर्गी जब वशस्ट् च र स थ ह ते ह

देख र्गय है की हम री सुांदरत तभी स थपक ह र्गी जब चररत्र हम र शुद्ध ह र्ग

हम रे सभी अर्नी सम्पवत तभी स थपक ह र्गी जब हम र स्व स्थ भी अच्छ ह र्ग

हम रे सभी तीथप य त्र य देिस्थ न र्गमन तभी स थपक ह ांर्गे जब ह्रदय में भ ि ह

हम र सब क र ब र और व्य र् र तभी स थपक ह ांर्गे जब हम र व्य ह र ठीक ह

ठीक इसी तरह हम री विद्धत और ज्ञ न तभी स थपक ह ांर्गे जब सरित स थ ह

हम र म न सम्म न और प्रवसक्तद्ध तभी स थपक ह ांर्गे जब मन में वनरअहांक ररत ह

हम री समझद री और बुक्तद्धमत तभी स थपक ह ांर्गे जब सब वििेक हम रे स थ ह

हम रे र्ररि र क खुश ह न तभी स थपक ह र्ग जब उसमे प्य र दय विश्व स ह

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इस जीिन में आर्गे बढे चि

हम र यह जीिन इस सांस र में उतन सरि नहीां है वजतन हमक

बति य र्गय है

च हे हम रे र ह ां में सुन्दर ियि क्तखिें ह ां य विर उन में जहरीिे क ांटें

क् ां न र्ड़े हैं

ज भी ह र्र ऐस िर्गन िर्ग ि अर्ने मन में की कभी अर्ने र ह ां

क न छ ड तुम

च हे ज भी विर्त एां स मने आती रहें र्र अर्ने वहम्मती मुख क

कभी न म ड़ तुम

इस जीिन में वकसी क स थ रहे य न रहे र्र अर्ने िर्गन और

वहम्मत न छ ड तुम

वकसी से कृर् की वभक्ष न म ांर्गन र्र अर्ने वदि और वदम र्ग क

त कत से ज ड़ तुम

र्रमवर्त र्रमेश्वर र्र सद भर स रक्ख र् ठ प्रेम भ ि क सब क

र्ढ़ ते चि तुम

जब तक इस जीिन की स ूँसें चिती रहे अर्ने तन मन क सांभ ि

आर्गे बढ़ते रह तुम

हमने देख है की आज क चित विरत म नि र्ि भर में दुुः ख ददप

क वशक र बने

र ज क वभख री ह न भी इस सांस र में देख र्गय है र्र तुम क् ां

ऐस वशक र बने

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आर्गे बढ़ने के विए प्रेरण च वहए |

वजांदर्गी में कई ब र मुसीबत ां के ऐसे तयफ़ न आते हैं वक इन्स न की सांयम और

धैयप की कश्ी ड ांि ड ि ह ने िर्गती है। ऐसी र्ररक्तस्थवत में इन्स न क हौसि

रखते हुए उस तयफ़ न क स मन करन च वहए और अर्ने जीिन की न ि क

स र्गर की िहर ां से िड़ते हुए आर्गे बढ़ न च वहए। आर्गे बढ़ने के विए प्रेरण