Kavitanjali by Dr Ram Lakhan Prasad - HTML preview

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भयवमक

म ननीय श्री हरीश चांद्र शम प, विजी के भयतर्यिप

उर्प्रध न मांत्री

मुझे डॉक्टर र म िखन प्रस द ने अर्ने

कवित ांजवि के भयवमक विखने क अिसर

प्रद न वकय इसके विए मैं जह ूँ उनक

धन्यि द देत हूँ िहीूँ इस सम्म न क आदर

करत हूँ। इन् ां ने १९८० से िेकर अभी तक

अर्ने कई रचन ओां क हम रे समक्ष रक्ख

है वजन में उनकी कह वनय ां, वनबांध,

कवित येूँ और जीिन के कई अन्य र्हिुओां के प्रस रण श वमि हैं।

उनकी यह कवित ांजवि वहांदी स वहत्य की दुवनय ां में सब से निीन

रचन है।

इतन कहते हुए मुझे िक्र ह त है की ड क्टर जी की कल्पन शक्ति

की क ई सीम नहीां है। मैं त यही कहांर्ग की जह ूँ न ज सके रवि

िह ां र्हुांचे हैं हम रे ये कवि और इन की रचन एां र् ठक ां क एक नहीां

रौशनी प्रद न करती हैं तथ करती ही रहेंर्गी।

अर्ने हर एक िेख में इन् ां ने अर्नी सिित क श्रेय ईश्वर,अर्ने

र्गुरुजन ां और अर्ने र्यिपज ां क देते रहे हैं। ख़ुशी त इस ब त की है

की आर् अर्नी प्रशांस नहीां करतें है बक्ति इनके र् ठक इन के

रचन ओां क आदर कर के इनक अर्ने प्रसांश क मौक प्रद न

वकय है।

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कवि रहीम ने ठीक ही कह है की ‘बड़े बड़ ई न करैं, बड़ न ब ि

ब ि ।‘रवहमन’ हीर कब कहै, ि ख टक मम म ि।। ज सचमुच

बड़े ह ते हैं, िे अर्नी बड़ ई नहीां वकय करते, बड़े-बड़े ब ि नहीां

ब ि करते। हीर कब कहत है वक मेर म ि ि ख टके क है।

हम रे कवि डॉक्टर र म िखन प्रस द भी आत्म प्रशांस से र्रे हैं।

हम रे स मने ज कवित ांजवि की रचन प्रस्तुत की र्गई है ि कई िर्षों

की कवठन र्ररश्रम क िि है तथ मुझे विश्व स है की इस र्ुस्तक क

र्ढ़ते समय र् ठक जह ूँ आनांद उठ एांर्गे िहीूँ िे आत्मवबभ र भी ह

ज एांर्गे।

हम री र्रम वर्त र्रमेश्वर से यही प्र थपन है की डॉक्टर जी क िम्बी

उम्र प्रद न करें त वक आर् स वहत्य के सांस र में और भी सेि करतें

रहें वजस से हम सब क कल्य ण ह त रहे।

आर् के अकथ र्ररश्रम और सभी शुभ कमों के विए आर् क बध ई

ह यही हम सब की मन क मन है।

हरीश चांद्र शम प,

वसडनी, ऑस्ट्रेविय |

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र्ररचय

हम र र्ररचय अर्ने र् ठक ां क देन हम रे विए कवठन है विर भी मैं क वशश करत हूँ

की अर्ने स रे जीिन की कह नी त नहीां र्र कुछ ख स विर्षय ां क िणपन कर। बचर्न

त अर्ने बुजुर्गों के स थ उनके वकस नी जीिन में बड़े सुकयन से बीत थ । िड़कर्न में

प्र रांवभक वशक्ष के ब द कई ज्ञ न मांवदर ां में हम र प्रवशक्षण ह त रह और मैं एक

अध्य र्क बन र्गय तथ वकतने स म वजक सांस्थ ओां में वशक्षण क क यप करत रह ।

हम रे हुनर और र्गुण ां क र्रख कर हम क र् ठ्यक्रम क मुक्तखय बन य र्गय और

अध्य र्क ां क सि ह देत रह तथ कई र ष्ट्रीय इक्तिह न ां क सञ्च िन भी करत रह ।

र्च स िर्षों के सेि के ब द मैं ने सरक री नौकरी से अिक स िे िी और ब्य र् ररक

सांस्थ में श वमि हुि जह हम ने अर्ने विद्य िांक र की उर् वध ह वसि वकय । ग्य रह

िर्षों के ब द मैं म दरेितन क छ ड़ कर विदेश चि आय और यह ूँ भी वशक्षण क

क म एक उच्च वशक्षक के रर् में दस िर्षों तक कर के अिक स ग्रहण वकय और अर्ने

मक न क अर्न मांवदर बन कर जीिन वबत ने िर्ग । अर्ने जीिन के ८४ िर्षों की

अिधी में हम ने जह ूँ सम ज की विवभन्न प्रक र से सेि करत रह िहीूँ अर्ने ररश् ां क

बरक़र र रख हूँ।

एक िेखक के रर् में हम ने अर्ने विच र ां क अर्ने अनवर्गनत वनबांध ां, कह वनय ां, कवित ओां और भ र्षण ां में व्यि करत रह । हम र जीिन ख़ुशी, सुखी और श ांवत से

सुसक्तित है क्यांवक मेर अटि विश्व स र्रम वर्त र्रमेश्वर के आवशब पद में सद से रह

है। इस कवित ांजवि में हम ने अर्ने विच र क वनच ड़ के रख वदय है बस यही हम र

सही र्ररचय है।

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प्रस्त िन

इस प्रक शन के प्रस्त िन विखने से र्हिे मैं यह कहन जरुरी समझत हूँ की मेरी

सभी रचन एूँ मेरे वदि और वदम र्ग की क़ बवियत है वजनक मैंने खुद रच है और

सज य है।

इस प्रक शन में मेरे अर्ने रचे हुए कवित येूँ हैं वजन क मैं ने अर्ने बचर्न से ही अर्ने

मक्तततष्क में छुर् ये और सज ये रक्ख थ र्र अब समय आने र्र िे सब उभर ही र्गएूँ हैं।

शब् ां क चुन चुन के हमने इकठ्ठ वकय है वजनक हम रे र् ठक जरर च हेंर्गे।

एक ब त और मैं कह देन च हत हूँ और िह है की यह सब कवित ज्ञ न मुझे हम रे

र्गुरुजन और बुजुर्गों की कृर् है। उन सब के चरण ां में मैं अर्न श ष्ट् ांर्ग प्रण म प्रर्गट

करत हूँ। वकतने कवित ओां क हमने अर्ने द स्त ां और सहर् ठीयय ां क य द ां से रच

है क्यांवक उनके ही स थ रह कर हम ने बहुत कुछ सीख थ । इस के विए मैं उन सभी

क भी क वट क वट धन्यब द देत हूँ।

मेरे स रे जीिन की सिर एक ऐसी चिन थी वजस में जह ूँ हम रे ि र्ग ां क आवशब पद

थ िही हम रे सभी वदिचक्तिय ां क अनुर र्ग थ । हम र बचर्न बुजुर्गों के सम्मवित

र्ररि र में र्गुजर जह ूँ की वशक्ष वदक्ष ऐसी रही की हम र स र जीिन खुशी, सुखी

और भक्ति भ ि से सुसक्तित थी। इस ि त िरण में र्ि कर मैं आज अर्ने आर् क

एक प्रेम क र्ुज री समझत हूँ तथ अर्ने सभी ररश् ां क सुरवक्षत रखने की चेस्ट्

करत रहत हूँ। कृवर्ष ज्ञ न त वमिी ही थी िेवकन विवभन्न वशक्ष के सांस्थ ओां ने मुझे

स हस, िर्गन , प्रेरण और क वशश क म र्गप वदख य थ । यही म र्गप र्र मैं चित रह

और अर्ने र्ररि र, ररश्ेद र ां तथ सम ज क सेि बड़े उत्स ह से करत रह । उम्र

ढिती रही और मैं उभरत रह उस र्रम वर्त र्रमेश्वर के कृर् और आवशब पद से

वजस क हम ने अर्ने जीिन के र्ुरे भ र क सौांर् कर सुख चैन की सैय र्र आर म

करत रह ।

जब मैं अर्ने प्रस्त ि क विख रह थ त एक अजीब वबच र हम रे मन में आय की

चैन से जीने के विए हम क च र र टी और द कर्ड़े क िी है र्र बेचैनी से जीने के

विए च र र्ग ड़ी और द बांर्गिे भी कम है।अर्ने इस कवित ांजवि की रचन करते िक़्त

कभी कभी र्गुस्स आज य करत थ क्यांवक मुझे उर्युि शब् नहीां वमि रहे थे िेवकन

विर य द आय की र्गुस्स करन अर्ने र्ैर ां र्र कुल्ह ड़ी म रने जैस ही है क्यांवक आर्

वजसर्े र्गुस्स करते हैं उससे ज्य द आर्क खुद क नुकस न ह ज त है । मैं म नत

हूँ की हम री हर सिित सांघर्षप से ह कर र्गुजरती है इसविए वबन सांघर्षप के हम कभी

भी सिित की कल्पन भी नहीां कर सकतें हैं । कवित ांजवि हम रे सांघर्षप की नतीज

है।

बस हम ने मुस्कुर ते हुए अर्ने इस रचन क र्गढ़ ही विय और अब इस जीिन में

मुस्कुर न हम रे विए एक कि ह र्गय है। वजसने भी इस कि क सीख वि य ि

जीिन में कभी दुखी ह ही नहीां सकत है।

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कवित ांजवि

यह सांग्रह वजसक मैंने ‘कवित ांजवि’ क न म वदय है यह हम रे ि रचन हैं

वजसक मैं अर्न चहक य किरि भी कहत हूँ त इस क मैंने अर्ने जि नी से

सज त चि आय हूँ इस विए इन रचन ओां क मैं अच्छी तरह से र्हच नत हूँ।

अर्ने जीिन के ८० िर्षों की इस के और मेरी घवनष्ट् वमत्रत रही है।

यह सभी रचन एूँ (कवित यें ह य अन्य िेख) मेरे ह्रदय के इतने वनकट रहें हैं

की मैं इनक अर्ने से जुद देख ही नहीां सकत हूँ। कभी मैं इनक अर्ने आत्म

की कि कहत हूँ त कभी इनक मैं अर्ने ह्रदय की अनुभयवत भी कहत हूँ।

हम रे वकतने वमत्र ां ने इन क र्ढ़ने के ब द यह कह है की यह सब कवित येूँ

क र्गज ां र्र वनक ि कर रख देने ि िे व्यक्तिर्गत ह्रदय क ही दयसर न म कह

ज सकत है।

हम रे एक वनकट के भक्तिम न द स्त ने कह है की ये सब मेरे जीिन के

सत्य न्वेर्षण में ज क्तिवत, ज प्रेरण छांद बृद्ध करती है। र्र मैंने इन सब सांग्रह ां

क अर्ने वजर्गर की र्गीत ही समझ है वजनक मैं र्ग त रह और चित रह इस

जीिन के सभी सहज और कवठन र ह ां र्र।

मैंने अर्ने इस कवित ज्ञ न क श्री र्गणेश अर्ने प्र इमरी स्कयि से ही वकय थ

और इस वदिचिी क धीरे धीरे बन त चि आय हूँ और आज मैं कई

कवित ओां क रचन|त्क र बन चयक हूँ । यह कि हम रे ह्रदय के अांदर चिती ही

रहती है तथ र् ठक इस सांग्रह क र्ढ़ कर यह अनुम न त िर्ग ही सकेंर्गे की

यह कवित करने की कि कहीां जल्द ज ने ि िी नहीां है |

इस कि क मैं ने बड़े प्रेम से बढ़ ि देत रह और आर्गे भी करत रहूँर्ग जब

तक इस शरीर में स ांस हैं। मुझे एक ब त और कहनी है इस सांघ्रह के ब रे में और

ि है की हम रे सभी कवित येूँ ज यह ूँ हैं और च हे कहीां भी छ र्ें र्गए ह उन सब

क रचन मेरे अर्ने विच र ध र ओां से प्रस्तुत की र्गयीां हैं। यह सब हम रे वनजी

अनुभि के प्रक शन हैं वजनक र् ठकर्गण जरर र्सांद करेंर्गे। यही हम र

ख़य ि है।

र् ठकर्गण देखेंर्गे की जह ूँ कवित ओां की भरम र हैं िहीूँ हम ने अर्ने वनबांध ां से

उनक सवमश्रण वकय है वजस से यह ज न ज सके की हर एक कवित के भ ि

क् है। कवित स वहत्य क एक अांर्ग है। कवित की एक वनवश्चत र्ररभ र्ष देन

कवठन है िेवकन इतन कह ज सकत है वक कवित आत्म द्व र अनुभयत भ ि ां

एिां विच र ां क प्रस्फुटन है ज छन्द और वनयवमत र्गवत से बांधी ह ने के क रण

त ि तथ िय क अर्ने में सम विष्ट् करती हैं। वहन्दी के कई विद्व न ां ने अर्ने

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विच र स र कवित क र्ररभ वर्षत करने क प्रय स वकय हैं। हम रे कवित ांजवि

में भी िही रर्, वचत्रण, िय, तुक और ध्ववन विर जम न है ज अक्सर सभी

कवित ओां में ह ती हैं।

हम रे विए भी सद से कवित की र्ररभ र्ष बहुत सुन्दर अथप प्रवतर् वदत करने

ि ि शब् ही क व्य कहि त रह तथ जब म नि एक सौन्दय पत्मक प्र णी है त

िह हम रे तरह सम ज में रहकर कुछ अनुभयवत करत है एिां उसे वभन्न-वभन्न

म ध्यम ां से प्रकट करत है । जब िह अर्नी अनुभयवत क भ र्ष के म ध्यम से इस

प्रक र अवभव्यि करत है वक उसमें सरित एिां सरसत ह त िह रचन एक

कवित क रर् िे िेती है। उस रचन में म धुयप तथ ओज ह और ह्रदय क

िक्तन्दत करने की शक्ति ह , त हम उसे कवित कहते हैं। कवित िह स धन है

वजसके द्व र सृवष्ट् के स थ मनुष्य के र र्ग त्मक सांबांध की रक्ष और वनि पह ह त

है।

हम ने भी अर्ने इस कवित ांजवि के जररये ऐस ही करने क प्रय स वकय है।

जैसी कवित ांजवि क मैं र्हच नत हूँ उस क रर् हम रे जीिन से वमित

जुित है और उससे मेरी घवनष्ट् वमत्रत है। िह मेरे ह्रदय के वबिकुि करीब है।

वजन आूँख ां य ह्रदय ने इसक आि वचत य र्ररक्षण की दृवष्ट् से देख है िही

इसके रांर्ग रर् क समझ कर रचन वकय है। मैं त इसे अर्ने आत्म की कि

ही समझांयर्ग क्यांवक अब यह मेरे ह्रदय की अनुभयवत बन र्गई है। क रे क र्गज़ र्र

शब् ां क चुन चुन कर रखने ि िे व्यवथत हृदय क यह दयसर न म है। मैं त अब

कहत हूँ की ि मेरे स्मृवत और प्रेरण में छांद-बद्ध ह र्गई है और हम रे र् ठक

इस क रसर् न करने के विए उत्सुक हैं।

हम रे इस कवित ांजवि क एक और ख स विशेर्षत है वजसमे र्गद्य और र्द्य य ने

कवित ओां और वनबांध ां क वमि र् य सक्तम्मश्रण है तथ यही र्गुण इसक

इवतह स क एक नय र ह य म ड़ देती है वजसक र् ठक अर्ने घर आूँर्गन और

र्ुस्तक ां के आिम री र्र सुसक्तित र् एांर्गे।

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हम री कवित यें

हम री कवित ओां की कि अब मेरी आदत सी बन र्गई है और वदि

वदम र्ग में सम ां र्गई है

इस आदत ने मेरी दुवनय ही बदि दी है बस सुबह श म वदन र त की

धड़कन बन र्गई है

स त हूँ य ज र्गत हूँ र्र अर्ने कवित ओां के स थ एक मधुर प्य र

क नर्गम बन विय हूँ

ये क ई र् र्गिर्न नहीां है और वसिप िर्गन भी नहीां है र्र येआदत अब

सि पर्रर बन र्गई है

इस क अर्ने मन की ईक्ष कहूँ य विर कहूँ इस क अर्ने वदि और

वदम र्ग की र्यज

चि कह ही देत हूँ की इसकी आदत और िर्गन से अच्छ अब नहीां

है क ई और दयज

हम री यह आदत और िर्गन नहीां हैं केिि हम री कवित की कि

य उनकी कह नी

इस जवटि आदत और िर्गन क अब मैं कहत हूँ हम री दीि नर्गी

ज ब नी है रि नी।

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