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स्वसंवाद यानी स्वयं से बातचीत करना। जिसे एकांत में, मन में या ग्रुप में दोहराने से अप्रत्याशित परिवर्तन का आभास हो सकता है। यह तभी कारगर होता है जब व्यक्ति जीवन के रिमोट कंट्रोल द्वारा अपने मन, शरीर, बुद्धि, चेतना और लक्ष्य पर नियंत्रण रखता है। इसी विषय पर सरश्री तेजपारखी द्वारा लिखी गई पुस्तक "स्वसंवाद का जादू' स्वसंवाद के माध्यम से उत्तम जीवन पाने के रहस्य से परिचित कराती है।
मूलतः 5 खण्डों में विभक्त इस पुस्तक के हरेक खण्ड में अनेक रोचक कहानियों द्वारा इसके महत्त्व को गहराई से समझाया गया है। स्वसंवाद के द्वारा पाठक सुख-दुःख के रहस्य, विचारों की दिशा, स्वसंवाद संदेश, रोग निवारण, सेल्फ रिमोट कंट्रोल, कार्य की पूर्णता, नफरत से मुक्ति, उत्तम स्वसंवाद और नए विचारों को प्राप्त करने के उपाय जान सकते हैं। सरश्री कहते हैं - सकारात्मक स्वसंवाद पर विश्वास रखने से ही उत्तम जीवन जीने का पथ प्रशस्त हो सकता है। भावनाओं में भक्ति और शक्ति की युक्ति द्वारा कुदरत से सीधा संवाद स्थापित किया जा सकता है।
कुल मिलाकर यह पुस्तक स्वसंवाद की महत्ता को रेखांकित करते हुए पाठकों को नई दिशा देती है। पुस्तक में अधिकतम सरल शब्दों का ही प्रयोग हुआ है, जिससे पाठकों का हर वर्ग आसानी से शब्दों के सार ग्रहण कर लेता है। वहीं कहानियों और उदाहरणों का अनूठा प्रयोग पाठकों को आकर्षित भी करता है।
कभी-कभी हमारे मन में यह जिज्ञासा आती है कि मैं कौन हूँ, ईश्वर कौन है, मैं कौन नहीं हूँ इत्यादि। जब ऐसी जिज्ञासाओं का कोई हल नहीं मिलता, तो हमारे अंदर संशय और बेचैनी पैदा हो जाती है जिसका परिणाम यह होता है कि हमारा जीवन नकारात्मक विचारों के दुष्परिणामों से प्रभावित होता रहता है तथा हमारा चेतन विश्वास तथा अज्ञानता के भँवर में गोते लगाता रहता है। यह पुस्तक हमारी इन्हीं जिज्ञासाओं को शांत करती है। इस पुस्तक के माध्यम से हम "अपनी पूछताछ' का मार्ग तलाश सकते हैं और अपने मनोशरीरयंत्र की पूछताछ ईमानदारी के साथ करते हुए "समझ' की मंजिल पा सकते हैं। पुस्तक मूलतः 6 खण्डों में विभाजित है, जिसके प्रथम खण्ड में "मशहूर मंत्र' यानी "अपने होने के एहसास' की कला समझाई गई है। अन्य खण्डों में "ईश्वर कौन', "मैं कौन नहीं' "मनोशरीर यंत्र कौन', "मैं कौन' और अन्त में "गुमनाम मंत्र' के द्वारा हम अपनी पूछताछ की संपूर्ण विधि जानकर अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। पुस्तक में प्रख्यात तेजगुरु सरश्री द्वारा शिष्यों द्वारा पूछे गए जिज्ञासा मूलक सवालों के सरल जवाब दिए गए हैं। ये सभी समाधान विषय की जटिलता को कम करके हमें स्व अनुभव की गहराइयों तक ले जानेवाले हैं। पुस्तक सरल भाषा और रोचक प्रसंगों द्वारा प्रस्तुत की गई है, जिसका पाठकों पर अमिट प्रभाव पड़ता है।
नींव यानी जड़ या आधार। अगर किसी मकान की नींव कमजोर होगी तो उसे धराशाई होने में देर नहीं लगेगी। उसी प्रकार यदि इंसान के चरित्र या अंत:करण की नींव मजबूत नहीं है तो उसका पतन निश्चित ही है।
इस पुस्तक में इंसान की तुलना एक पुस्तक से की गई है। जिस प्रकार 10 प्रतिशत कवर और 90 प्रतिशत पृष्ठों से निर्मित एक पुस्तक की सार्थकता अंदर के पृष्ठों में दी गई जानकारी से प्रमाणित होती है, ठीक वैसे ही इंसान का बाह्य रूप (10%) उसके अंत:करण (90%) की सार्थकता से ही स्पष्ट होता है। इसी विषय पर केंद्रित सरश्री की पुस्तक "नींव नाइन्टी' पाठकों के सर्वांगीण विकास की दिशा में मील का पत्थर है। पुस्तक में संपूर्ण चरित्र सौगात का सूत्र निर्धारित किया गया है। इसके अतिरिक्त नींव नाइन्टी मजबूत करने के सभी पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। जिससे पाठक अपने मानसिक, बौद्धिक, शारीरिक और आध्यात्मिक परिपक्वता को नया आयाम देकर समाज तथा देश के लिए प्रेरणा की जीवंत मिसाल बन सकते हैं।
पुस्तक का मूल उद्देश्य पाठकों के अंदर छिपे सद् गुणों को विकसित कराना है, जिससे वे पृथ्वी लक्ष्य आसानी से प्राप्त कर सकें। इसी उद्देश्य को साकार करने के लिए पुस्तक में महात्मा गांधी, मदर टेरेसा, विवेकानंद और संत तुकाराम जैसे महापुरुषों और विभिन्न धर्मों की शिक्षाओं का हवाला दिया गया है। पुस्तक में हर बात इतनी बारीकी से समझाई गई है कि पाठक आसानी से इसका लाभ लेकर अपना और औरों का जीवन सार्थक कर सकते हैं।
"प्रार्थना बीज'' इस विषय पर केंद्रित पुस्तक के प्रथम खण्ड में प्रार्थना की आवश्यकताओं, उद्देश्य, बाधाओं आदि के बारे में लोक कथाओं द्वारा प्रकाश डाला गया है। साथ ही प्रार्थना को असरदार बनाने के उपायों तथा विभिन्न धर्मों और संतों की अलग-अलग प्रार्थनाओं पर व्यापक चर्चा की गई है। पुस्तक के द्वितीय खण्ड में विश्वास बीज की चर्चा उल्लेखित है। लेखक के अनुसार विश्वास का बीज बोकर मनुष्य भक्ति, शक्ति और कृपा का फल प्राप्त कर सकता है। अज्ञानता के अंधकार से घिरा मनुष्य प्रस्तुत पुस्तक द्वारा विश्वास बीज की दिखाई राह पर चलकर मुक्ति पा सकता है। इस पुस्तक में प्रार्थना कैसे करें? प्रार्थना में ईश्वर से क्या माँगें? सबसे ऊँची प्रार्थना कौन सी है? प्रार्थना की 5 रुकावटें कौन सी हैं? प्रार्थना कैसे असरदार बनाएँ? ईश्वर, गुरु, कृपा के लिए कौन सी प्रार्थना करें? पूरे दिन प्रार्थनामय कैसे बनें? सभी धर्मों और संतों की प्रार्थनाएँ कौन सी हैं? और प्रार्थना के अन्य महत्वपूर्ण पहलू स्पष्ट किए गए हैं। इस पुस्तक में प्रार्थना की अदभुत शक्ति का रहस्य समझाया गया है। इसमें चार शब्दों की उच्चतम प्रार्थना, प्रार्थना से परमात्मा तक पहुँचने का मार्ग, प्रार्थना की समझ और हर समय की प्रार्थनाएँ दी गई हैं। इसके अतिरिक्त इस पुस्तक में प्रार्थना की 7 आवश्यकताओं में समझाया गया है
यह पुस्तक आपको न सिर्फ मृत्यु का दर्शन करवाती है बल्कि मृत्यु और मृत्यु उपरांत जीवन इस विषय पर समझ भी प्रदान करती है। मृत्यु एक ऐसा विषय है, जिसके बारे में हर इंसान के मन में कई तरह के सवाल होते हैं और वे सवाल न सुलझने की वजह से वह हमेशा डर-डरकर जीवन जीता है। उसे इस विषय के बारे में ज्यादा ज्ञान नहीं होता और वह कभी इस बारे में खोज करने की कोशिश भी नहीं करता। बचपन से जो मान्यताएँ उसके मन में डाल दी गई हैं, वह उन्हीं मान्यताओं के आधार पर कई बातें मानकर और डर-डरकर जीवन जीता है। प्रस्तुत पुस्तक से मृत्यु की सही समझ पाकर महाजीवन की यात्रा का शुभारंभ करें।
जीवन के हर मोड़ पर इंसान को मार्गदर्शन की जरूरत पड़ती है। चाहे बाल्यावस्था हो, किशोरावस्था हो, युवावस्था हो या वृद्धावस्था। इंसान को माता-पिता, शिक्षकों का मार्गदर्शन तो सहज ही मिल जाता है। इससे वह एक ऊँचे मुकाम पर पहुँच भी जाता है लेकिन जब उसे दिव्य मार्गदर्शन मिलता है तब उसके जीवन में चमत्कार होता है, वह सफलता की बुलंदियों को छूता है।
खुश व आनंदित लोग ही ईश्वर के इस मार्गदर्शन को पहचानकर खुशी फैला पाते हैं। वरना दुःखी लोग सारी जिंदगी बेसुरा राग आलापते हुए जान तक नहीं पाते कि वे किस अनमोल चीज से महरूम रहे। इसलिए यह पुस्तक न केवल ईश्वर से मार्गदर्शन पाने का तरीका सिखाती है बल्कि हमें हर कार्य हँसते हुए करना भी सिखाती है।इस पुस्तक में पढ़ें -
ईश्वरीय मार्गदर्शन में आनेवाली 7 बाधाएँ
• मार्गदर्शन पाने की तैयारी करने के 7 तरीके
• मार्गदर्शन के 7 कदम
• ईश्वरीय संकेतों को पहचानने के तरीके
• हर कार्य हँसते हुए कैसे करें
• इस पुस्तक को पढ़कर ईश्वरीय मार्गदर्शन पाने की हर संभावना को खोलें।
कितनी शुभ है यह इच्छा, ईश्वर से मुलाकात करने की। क्या आप में भी ऐसी शुभ इच्छा जगी है कि किसी दिन आप ईश्वर से मिल पाओ और बातें कर पाओ? यदि हाँ तो देर किस बात की है? देर है आपके अन्दर प्रार्थना उठने की। यह प्रार्थना थी एक बच्चे की जिसने मंदिर में अपने माता-पिता को ईश्वर की मूरत के आगे सिर झुकाते हुए देखा। बच्चे ने देखा कि कैसे मेरे माता-पिता रोज मंदिर आते है... यहाँ से थोडासा अमृत मिलने पर भी स्वयं को तृप्त महसूस करते हैं... रोज ईश्वर से बातें करते हैं... । तो उसके मन में प्रश्न उठा, 'हम तो रोज ईश्वर से बात करते हैं। ऐसा दिन कब आएगा जब ईश्वर भी हमसे बात करेगा, हमसे मुलाक़ात करेगा?
उस बच्चे का यह विचार उसकी प्रार्थना बन गया। इस प्रार्थना के बाद उस बच्चे को ईश्वर की सबसे खूबसूरत नियामत मिली, वह थी 'भक्ति नियामत' और वह बच्चा कहीं और नहीं, आपके अन्दर है।
भक्ति नियामत ईश्वर से मिलने का सबसे सहज व सरल मार्ग है। तो आइए भक्ति की इस खूबसूरत नियामत को समझें इस पुस्तक के जरिए और कहें, 'तुम्हें जो लगे अच्छा, वही मेरी इच्छा।'
मोक्ष की प्रचलित संकल्पनाओं को भेदनेवाली, मनुष्य के जीवन का सत्य बतानेवाली, मोक्ष जैसे अछूते और क्लिष्ट विषय को उजागर करनेवाली और पाठकों (साधक) का जीवन परिवर्तन करनेवाली पुस्तक है "मोक्ष'। मोक्ष यानी मुक्ति... भय से, चिंता से, शारीरिक बंधनों से भी... मोक्ष के बाद केवल आनंद ही होता है। शब्दों में बयान न किया जानेवाला मगर हर क्षण अनुभव के तौर पर जाननेवाला, जीवन व्याप्त करनेवाला - तेजआनंद। इसी कारण मोक्ष है, सुखी जीवन की कुंजी (गुरुकिल्ली) और अलौकिक सफलता का राजमार्ग। यह तेजसफलता, तेजआनंद, सुखी जीवन यानी मोक्ष कैसे प्राप्त करना है? मोक्ष हमारे जीवन का अंतिम लक्ष्य कैसे? इन सवालों के जवाब इस पुस्तक में आसान करके बताए गए हैं।
मोक्ष... इस कल्पना के संदर्भ में सर्वसाधारण लोगों में प्रचलित एक मान्यता है कि मोक्ष इंसान को उसकी मृत्यु के बाद ही प्राप्त होता है। यह मान्यता किस तरह गलत है, यह आप इस पुस्तक में पढ़नेवाले हैं। हम कौन हैं? इस शरीर की मृत्यु के बाद हम कहाँ जाएँगे? यह ज्ञात होना यानी मोक्ष। इसके लिए मौत का इंतजार नहीं करना पड़ता। इसी शरीर में, जीते जी यह ज्ञान प्राप्त हो सकता है। इंसान अज्ञान में अपनी विशिष्ट मान्यताएँ, वृतियाँ , विचार और विकारों के बहाव में जाकर संकुचित और सीमित जीवन जीता है। हर इंसान को इस पुस्तक द्वारा यह समझ प्राप्त होती है कि मोक्ष हमारे भीतर ही है और हमारे अस्तित्त्व का एक अभिन्न अंश है।
मोक्ष, यह एक गहन विषय है। तेजगुरु सरश्री तेजपारखीजी ने अत्यंत सरल-सहज भाषा में इस विषय पर प्रकाश डालकर, जनसामान्य के लिए मोक्ष का द्वार खोल दिया है। सारी मनुष्य जाति इस पुस्तक से लाभान्वित हो, यही शुभकामना है।